काला पानी की जेल
सुदूर टापू पर बना एक ऐसा कारागार जिस धरती पर का नरक कहा जाता है| यहां पर अंग्रेजों की हुकूमत द्वारा कैदियों को अपनी उंगलियों पर नचाया जाता था| दिन भर उनसे कठोर मेहनत करवाई जाती थी जो केदी काम पर न जाए उसे मरने पर छोड़ दिया जाता था|
आजादी के दौरान 80000 लोगों को काला पानि की जेल भेजा गया था| उसमें से 30000 कैदियों को वापस आ सके बाकी के 50000 कैदियों का क्या हुआ आज तक मालूम नहीं |
सन 1850 में अंग्रेजों ने भारत के बड़े हिस्से को गुलाम कर लिया था| उसे दौर में आजादी के लिए उठने वाली हर आवाज को दबा दिया जाता था| लेकिन 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़ी आवाज उठी| लेकिन यह हमारा पहला स्वतंत्रता आंदोलन था | उसको दबाने के लिए अंग्रेजों ने सबको पकड़ना शुरू कर दिया और कहिको फांसी पर लटकाया दिया जाता था या फिर टॉप से उड़ाया जाता था | धीरे-धीरे क्रांतिकारियों की संख्या बढ़ने लगी इस बढ़ती संख्या को देखकर अंग्रेज इसको मौत के घाट उतारना असंभव हो गया था इसलिए हजारों क्रांतिकारियों को कैद कर लिया|
विद्रोह के डर से उन्हें यहां से दूर भेजना चाहते थे| इसलिए उन्होंने आंदोमान द्वीप 10 मार्च 1858 के दिन अंग्रेजों ने 1000 क्रांतिकारियो को जहाज में बिठाकर अंडमान निकोबार जाने के लिए रवाना हुई | कहीं दोनों का सफर करके कैदी वहां पहुंचते हैं और देखते हैं चारों तरफ समुद्र से गहरा इन टापू को देखकर होश उड़ गए| अंग्रेजों ने इस चारों तरफ समुद्र से घेरे इस टापू को नर्क में बदल दिया | मगरमच्छ, सांप, बिच्छू और कीड़े, मकोड़े से घेरा यह टापू बीमारियों का घर माना जाता था| वहां से जाने का रास्ता भी मौजूद नहीं था| और ऐसे कहलाई यह कला पानी की जेल|
कहां जाता था की सजा से बेहतर तो मौत होती थी | जो भी उसे देखता उसकी रूप काँप जाती थी|
ब्रिटिश अधिकारीओने कैदियों से जंगलों की कटाई करवाई गई | और उसे लकड़ी से कमरे बनवाये गए जिससे बनाने मैं कैदियों को बहुत कठियानिया होती थी | मलेरिया जैसी बीमारियां से अपनी जान गवा देते थे| तो कुछ केदी तो सांप के ढंख से मर गए|
आंदोमान में जेल का निर्माण कैसे किया गया
इन कैदियों से आंदोमान की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में पहली जेल का निर्माण किया करवाया गया | जिन में छोटे-छोटे कच्चे घर बनाए गए थे| जैसे कैदियों की संख्या बढी ब्रिटिश हुकूमत ने 1890 में कैदियों को भेजना शुरू कर दिया था| जिसकी वजह से 1896 में दूसरी जेल का निर्माण करने को कहा| यह जेल का नाम सेल्यूलर जेल कहा गया बाद में उसे कला पानी की जेल का नाम दिया |
10 मार्च 1906 में इस जेल का काम पूर्ण हुआ |
इसका नाम काला पानी की जेल क्यों पड़ा
हिंदू समाज में यह मान्यता थी कि समुद्र का समुद्र यात्रा करने से व्यक्ति का धर्म नष्ट हो जाता है| ऐसे लोगों को समाज से बाहर किया जाता था| उसे मान्यता के कारण समुद्र के पानी को काला पानी कहा जाता था| इसलिए इस अंडमान जेल को काला पानी की सजा के नाम दिया गया|
काला पानी जेल के अंदर कैदियों पर होते जुल्म
अंग्रेजों ने इस जेल में कहीं क्रांतिकारियों को भेजना शुरू किया | इस जेल में क्रांतिकारी पर बहुत जुल्म होते थे| यहां पर कैदियों को महीना तक नहीं नहाने को मिलता था | नहाने के लिए पानी की कोई व्यवस्था भी नहीं थी| पीने का पानी इतना गंदा था कि उसे पीकर हजारों कैदियों को बीमार पड़ने से मौत हो गई| इस जेल में कैदियों को खाना सिर्फ जिंदा रहने के लिए ही दिया जाता था| और खाने में कीड़ों वाली दाल परोसी जाती थी | यहां पर कैदियों को हर दिन 10 लीटर तेल या 20 लीटर तेल निकालना पड़ता था| और जो कह दिया इस टारगेट को नहीं पूरा कर पाता था उसको शाम को हथकड़ियां से बांधकर उल्टा लटकाया जाता था| और उनके बदन पर कोड़िए बरसाए जाते थे | कालापानी जेल में सिर्फ एक केदी रहता था | जिसके गले के पट्टे में उसकी सजा लिखी हुई होती थी या कभी भी किसी को भी फांसी दे दी जाती थी| किसी केदी को तोप के सामने रखकर उड़ा दिया जाता था| अगर कोई कैदी यहां पर बीमार हो जाए तो उसे इलाज करवाने के जगह समुद्र में तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता था | रात को सोने के लिए इन कैदियों के पास ना कंबल था ना रजाई ना पलंग उसे जमीन पर ही सोना पड़ता था| रात को सोने के लिए कैदियों को सिर्फ तीन या चार घंटे ही मिलते थे | इसी वजह से काला पानी की सजा को धरती का नरक कहा गया है |
काला पानी की सजा काट रहा शेर अली अफरीदी ने अंग्रेज के वॉइसरोय लोड मेयो को मार दिया था|
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